EN اردو
मुहीत-ए-रहमत है जोश-अफ़ज़ा हुई है अब्र-ए-सख़ा की आमद | शाही शायरी
muhit-e-rahmat hai josh-afza hui hai abr-e-saKHa ki aamad

ग़ज़ल

मुहीत-ए-रहमत है जोश-अफ़ज़ा हुई है अब्र-ए-सख़ा की आमद

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

;

मुहीत-ए-रहमत है जोश-अफ़ज़ा हुई है अब्र-ए-सख़ा की आमद
ख़ुदा की हर चीज़ कह रही है कि अब है नूर-ए-ख़ुदा की आमद

फ़लक को है आरज़ू कि झुक कर मैं अपने तारे करूँ निछावर
हुई है मक्का की सर-ज़मीं पे ये आज किस मह-लक़ा की आमद

हर इक मुहिब पर ये फ़ज़्ल-ए-रब है असर को नालों की ख़ुद तलब है
मगर उस अल्ताफ़ का सबब है हबीब-ए-रब्ब-उल-उला की आमद

'हिजाब' पैहम ये कह रहा है गुनाहगारों ने जोश-ए-रहमत
मुबारक ऐ आसियो मुबारक शफ़ी-ए-रोज़-ए-जज़ा की आमद