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मुद्दई' उस से सुख़न-साज़ ब-सालूसी है | शाही शायरी
muddai us se suKHan-saz ba-salusi hai

ग़ज़ल

मुद्दई' उस से सुख़न-साज़ ब-सालूसी है

मीर क़मरूद्दीन मन्नत

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मुद्दई' उस से सुख़न-साज़ ब-सालूसी है
फिर तमन्ना को यहाँ मुज़्दा-ए-मायूसी है

मेरी ही तरह जिगर ख़ूँ है तिरा मुद्दत से
ऐ हिना किस की तुझे ख़्वाहिश-ए-पा-बोसी है

आह ऐ कसरत-ए-दाग़-ए-ग़म-ए-ख़ूबाँ कि मुदाम
सफ़्हा-ए-सीना पुर-अज़-जल्वा-ए-ताऊसी है

तोहमत-ए-इश्क़ अबस करते हैं मुझ को 'मिन्नत'
हाँ ये सच मिलने की ख़ूबाँ से तो इक ख़ू सी है