मुद्दई' उस से सुख़न-साज़ ब-सालूसी है
फिर तमन्ना को यहाँ मुज़्दा-ए-मायूसी है
मेरी ही तरह जिगर ख़ूँ है तिरा मुद्दत से
ऐ हिना किस की तुझे ख़्वाहिश-ए-पा-बोसी है
आह ऐ कसरत-ए-दाग़-ए-ग़म-ए-ख़ूबाँ कि मुदाम
सफ़्हा-ए-सीना पुर-अज़-जल्वा-ए-ताऊसी है
तोहमत-ए-इश्क़ अबस करते हैं मुझ को 'मिन्नत'
हाँ ये सच मिलने की ख़ूबाँ से तो इक ख़ू सी है

ग़ज़ल
मुद्दई' उस से सुख़न-साज़ ब-सालूसी है
मीर क़मरूद्दीन मन्नत