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मिज़ाज-ए-मुस्तक़िल देना शुऊर-ए-मोअतबर देना | शाही शायरी
mizaj-e-mustaqil dena shuur-e-moatabar dena

ग़ज़ल

मिज़ाज-ए-मुस्तक़िल देना शुऊर-ए-मोअतबर देना

गौहर उस्मानी

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मिज़ाज-ए-मुस्तक़िल देना शुऊर-ए-मोअतबर देना
झुका पाए न जिस को वक़्त का तूफ़ाँ वो सर देना

मुझे उम्र-ए-ख़िज़र देना कि उम्र-ए-मुख़्तसर देना
मिरे अफ़्कार लेकिन ज़िंदा-ए-जावेद कर देना

जो उट्ठे सम्त-ए-माज़ी वो नज़र मेरा नहीं हासिल
पस-ए-दीवार-ए-मुस्तक़बिल जो देखे वो नज़र देना

मुजाहिद जंग के मैदाँ को जाए जिस तरह घर से
ये मंज़र ज़ेहन में रख कर मुझे इज़्न-ए-सफ़र देना

अगर इस रज़्म-गाह-ए-दहर में जीना ही है मुझ को
तो फिर इन यूरिशों में ज़िंदा रहने का हुनर देना

सिवा हो जाए जिस से अज़्मत-ए-दीदा-वरी 'गौहर'
नज़र देना तो यारब फिर मुझे ऐसी नज़र देना