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मिट्टी हो कर इश्क़ किया है इक दरिया की रवानी से | शाही शायरी
miTTi ho kar ishq kiya hai ek dariya ki rawani se

ग़ज़ल

मिट्टी हो कर इश्क़ किया है इक दरिया की रवानी से

मोहसिन असरार

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मिट्टी हो कर इश्क़ किया है इक दरिया की रवानी से
दीवार-ओ-दर माँग रहा हूँ मैं भी बहते पानी से

बे-ख़बरी में होंट दिए की लौ को चूमने वाले थे
वो तो अचानक फूट पड़ी थी ख़ुशबू रात की रानी से

वो मजबूरी मौत है जिस में कासे को बुनियाद मिले
प्यास की शिद्दत जब बढ़ती है डर लगता है पानी से

दुनिया वालों के मंसूबे मेरी समझ में आए नहीं
ज़िंदा रहना सीख रहा हूँ अब घर की वीरानी से

जैसे तेरे दरवाज़े तक दस्तक देने पहुँचे थे
अपने घर भी लौट के आते हम इतनी आसानी से

हम को सब मालूम है 'मोहसिन' हाल पस-ए-गिर्दाब है क्या
आँख ने सच्चे गुर सीखे हैं सूरज की दरबानी से