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मिरी जाँ सरसरी मिलने से क्या मालूम होता है | शाही शायरी
meri jaan sarsari milne se kya malum hota hai

ग़ज़ल

मिरी जाँ सरसरी मिलने से क्या मालूम होता है

सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी

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मिरी जाँ सरसरी मिलने से क्या मालूम होता है
परखने से बशर खोटा खरा मालूम होता है

तुम्हारे दिल में और मेरा तसव्वुर हो नहीं सकता
तुम्हारे दिल में कोई दूसरा मालूम होता है

तिरे क़दमों से ये वीराना जन्नत हो गया गोया
मुझे दुनिया से अपना घर जुदा मालूम होता है

मुझे तुम बेवफ़ा कहते हो अच्छा बेवफ़ा हूँ मैं
मगर ये मुद्दई का मुद्दआ' मालूम होता है

तुम्हारे दिल में जो कुछ आए पिन्हाँ रह नहीं सकता
तुम्हारा दिल तो कोई आईना मालूम होता है

अद्ल की शक्ल से ज़ाहिर उस का दिल शिकस्ता है
चमन में और कोई गुल खिला मालूम होता है

फ़क़ीरों की सदा सुन कर मिरे धोके में कहते हैं
सिखा मालूम होता है 'सख़ा' मालूम होता है