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मिरी फ़ुग़ाँ में असर है भी और है भी नहीं | शाही शायरी
meri fughan mein asar hai bhi aur hai bhi nahin

ग़ज़ल

मिरी फ़ुग़ाँ में असर है भी और है भी नहीं

नूह नारवी

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मिरी फ़ुग़ाँ में असर है भी और है भी नहीं
उधर किसी की नज़र है भी और है भी नहीं

कोई मिलेगा ये क्या हम कहें यक़ीन के साथ
पराए दिल की ख़बर है भी और है भी नहीं

मिला था हुस्न तो रहना था दूर दूर उसे
वो रश्क-ए-शम्स-ओ-क़मर है भी और है भी नहीं

उम्मीद-ओ-बीम में उल्फ़त ने हम को डाल दिया
इलाज-ए-दर्द-ए-जिगर है भी और है भी नहीं

करम के साथ सितम था जफ़ा के साथ वफ़ा
नज़र में उन की नज़र है भी और है भी नहीं

मिरे ख़याल में आओ मिरी नज़र में फिरो
ये इक तरह का सफ़र है भी और है भी नहीं

जो पूछता हूँ तो अख़्तर-शनास कहते हैं
कि शाम-ए-ग़म की सहर है भी और है भी नहीं

जनाब-ए-'नूह' ये क्या बार बार कहते हैं
वो जोश-ए-दीदा-ए-तर है भी और है भी नहीं