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मिरे मरने से तुम को फ़िक्र ऐ दिलदार कैसी है | शाही शायरी
mere marne se tumko fikr ai dildar kaisi hai

ग़ज़ल

मिरे मरने से तुम को फ़िक्र ऐ दिलदार कैसी है

हसन बरेलवी

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मिरे मरने से तुम को फ़िक्र ऐ दिलदार कैसी है
तुम्हारी दिल-लगी को महफ़िल-ए-अग़्यार कैसी है

हमारे घर से जाना मुस्कुरा कर फिर ये फ़रमाना
तुम्हें मेरी क़सम देखो मिरी रफ़्तार कैसी है

वो मुझ से पूछते हैं ग़ैर से और तुम से क्यूँ बिगड़ी
ज़रा हम भी सुनें आपस में ये तकरार कैसी है

मआज़-अल्लाह बर्क़-ए-हुस्न किस की आँखें उठने दे
तमाशाई नहीं वाक़िफ़ कि शक्ल-ए-यार कैसी है

'हसन' जाम-ए-मय-ए-गुल-रंग ले कर सोचते क्या हो
अगर क़ीमत नहीं क़ीमत में ये दस्तार कैसी है