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मिरे लबों पे आते आते कोई बात थक गई | शाही शायरी
mere labon pe aate aate koi baat thak gai

ग़ज़ल

मिरे लबों पे आते आते कोई बात थक गई

नसीम अंसारी

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मिरे लबों पे आते आते कोई बात थक गई
ये क्या हुआ कि चलते चलते काएनात थक गई

मैं रौशनी पे ज़िंदगी का नाम लिख के आ गया
उसे मिटा मिटा के ये सियाह रात थक गई

मैं ज़िंदगी के फ़ासलों को नापने निकल पड़ा
क़रीब-ए-मंज़िल-ए-सफ़र मिरी हयात थक गई

बड़ा कठिन है दोस्तो ख़ुद अपनी ज़ात का सफ़र
कभी कभी तो यूँ हुआ कि अपनी ज़ात थक गई

रहे जुनूँ के हौसले बुलंद से बुलंद-तर
ख़ुद आगही हज़ार बार दे के मात थक गई