मिरे जिगर की ताब देख रुख़ की शिकस्तगी न देख
फ़ितरत-ए-आशिक़ी समझ क़िस्मत-ए-आशिक़ी न देख
और नज़र वसीअ' कर पेश-ए-निगाह ही न देख
मौत में ढूँड ज़िंदगी ज़ीस्त में नीस्ती न देख
जैसे हर इक नफ़स नफ़स नोक-ए-सिनाँ लिए हुए
इश्क़ का ख़्वाब देख ले इश्क़ की ज़िंदगी न देख
मैं तो सरा-ए-शौक़ में दिल का कँवल जला चुका
अब ये तिरी ख़ुशी कि तू देख कि रौशनी न देख
एक उसूल याद रख सालिक-ए-राह-ए-ज़िंदगी
नक़्श-ओ-निगार-ए-दहर देख मुड़ के मगर कभी न देख
अपनी निगाह फेर ले हाँ ये मुझे क़ुबूल है
रख मिरी आरज़ू की शर्म-ए-शौक़ की बेबसी न देख
तुझ पे अयाँ है राज़-ए-दिल जान के बिन न बे-ख़बर
मा'नी-ए-ख़ामुशी समझ सूरत-ए-ख़ामुशी न देख
'मुल्ला' ये क्या लगा लिया दिल को हँसी हँसी में रोग
बात बता रहे थे जो हो के रही वही न देख
ग़ज़ल
मिरे जिगर की ताब देख रुख़ की शिकस्तगी न देख
आनंद नारायण मुल्ला