मिरा दिल देखो अब या मेरे दुश्मन का जिगर देखो
तुम्हारे बस में आँखें हैं जिधर जाओ उधर देखो
क़यामत में न मेरे मुँह से फिर फ़रियाद निकलेगी
अगर ये कह दिया उस ने यहाँ आओ इधर देखो
तुम्हारे नाम पर मर मिटने वाला कौन है मैं हूँ
अगर सोचो अगर समझो अगर मानो अगर देखो
मिरे दिल को चरा कर फिर चुराओ आँख क्या मअनी
निगाह-ए-क़हर ही से तुम मुझे देखो मगर देखो
जो कहता हूँ फ़ना के ब'अद सब को चैन मिलता है
तो वो कहते हैं फिर अब देर क्या तुम भी मर देखो
रक़ीबों को तुम आँखें तो दिखाते हो सर-ए-महफ़िल
कहीं ऐसा न हो बन जाए मेरी जान पर देखो
किसी को देख कर ऐ 'नूह' कैसी कुछ बनी दिल पर
ये किस कम-बख़्त ने तुम से कहा था तुम इधर देखो
ग़ज़ल
मिरा दिल देखो अब या मेरे दुश्मन का जिगर देखो
नूह नारवी