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मिले तो काश मिरा हाथ थाम कर ले जाए | शाही शायरी
mile to kash mera hath tham kar le jae

ग़ज़ल

मिले तो काश मिरा हाथ थाम कर ले जाए

लियाक़त अली आसिम

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मिले तो काश मिरा हाथ थाम कर ले जाए
वो अपने घर न सही मुझ को मेरे घर ले जाए

बुतान-ए-शहर तुम्हारे लरज़ते हाथों में
कोई तो संग हो ऐसा कि मेरा सर ले जाए

दिया करूँगा यूँही तेरे नाम की दस्तक
मिरा नसीब मुझे लाख दर-ब-दर ले जाए

वो आदमी हो कि ख़ुशबू बहुत ही रुस्वा है
हवा-ए-शहर जिसे अपने दोश पर ले जाए

मिरे क़रीब से गुज़रे तो अहल-ए-दिल बोले
उठा के कौन परिंदा लहू में तर ले जाए

पलट के आए तो शायद न कुछ दिखाई दे
वो जा रहा है तो 'आसिम' मिरी नज़र ले जाए