EN اردو
मेज़ों पे सजा के अयाग़ धरो | शाही शायरी
mezon pe saja ke ayagh dharo

ग़ज़ल

मेज़ों पे सजा के अयाग़ धरो

शारिक़ अदील

;

मेज़ों पे सजा के अयाग़ धरो
अब दामन दामन दाग़ धरो

हम-सायों के घर हैं छप्पर के
ला कर न हवा में चराग़ धरो

आकाश को इक दिन छू लेगा
उस सर में मेरा दिमाग़ धरो

बेगानों की है ये बस्ती
मंज़िल के यहाँ न सुराग़ धरो

अच्छा नहीं दिल का कोरा-पन
इस बंजर में एक बाग़ धरो