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मेरे दिल में घर भी बनाता रहता है | शाही शायरी
mere dil mein ghar bhi banata rahta hai

ग़ज़ल

मेरे दिल में घर भी बनाता रहता है

शाहिद ग़ाज़ी

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मेरे दिल में घर भी बनाता रहता है
और दिल पर नश्तर भी चलाता रहता है

दुश्मन की बातों में आ कर भाई मिरा
सब से जाने क्या क्या कहता रहता है

देता है पैग़ाम-ए-मोहब्बत दुनिया को
ख़ुद नफ़रत की आग लगाता रहता है

भाई मिरा जो पैकर था हमदर्दी का
राह में मेरी ख़ार बिछाता रहता है

गुम-सुम उस की याद में रहता है अक्सर
आँखों से वो अश्क बहाता रहता है

वो तो ख़ुद इक प्यासा है शाहिद 'ग़ाज़ी'
फिर भी सब की प्यास बुझाता रहता है