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मेरे अरमाँ वो सुधारे यूँ के यूंहीं रह गए | शाही शायरी
mere arman wo sudhaare yun ke yunhin rah gae

ग़ज़ल

मेरे अरमाँ वो सुधारे यूँ के यूंहीं रह गए

मुज़्तर ख़ैराबादी

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मेरे अरमाँ वो सुधारे यूँ के यूंहीं रह गए
हौसले सारे के सारे यूँ के यूंहीं रह गए

जो दुआ माँगी वो फिर वापस न आई हिज्र में
हाथ हम अपने पसारे यूँ के यूंहीं रह गए

जान लेने का तो वा'दा आज पूरा हो गया
और सब वा'दे तुम्हारे यूँ के यूंहीं रह गए

वक़्त-ए-ज़ीनत सुन के वो मेरी परेशानी का हाल
अपने गेसू बे-सँवारे यूँ के यूंहीं रह गए

दे के दिल उन को न देखा और को 'मुज़्तर' कभी
सब हसीं जोबन उभारे यूँ के यूंहीं रह गए