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मेरा दिल-ए-नाशाद जो नाशाद रहेगा | शाही शायरी
mera dil-e-nashad jo nashad rahega

ग़ज़ल

मेरा दिल-ए-नाशाद जो नाशाद रहेगा

फ़रहत कानपुरी

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मेरा दिल-ए-नाशाद जो नाशाद रहेगा
आलम दिल-ए-बर्बाद का बर्बाद रहेगा

ता-देर जो हंगामा-ए-फ़रियाद रहेगा
शक है कि कहीं आलम-ए-ईजाद रहेगा

पाबंदी-ए-अक़्दार में आज़ाद रहेगा
लेकिन ये तिरा जौर-ओ-सितम याद रहेगा

दिल अपने ही हाथों से जो बर्बाद रहेगा
अफ़्साना-ए-नाकामी-ए-फ़रियाद रहेगा

दिल सुस्त तो लब तिश्ना-ए-फ़रियाद रहेगा
अब फ़रहत-ए-नाशाद तो नाशाद रहेगा

दिल महव-ए-चमन है तो निगाहों में चमन है
पाबंद-ए-क़फ़स हो के भी आज़ाद रहेगा

ग़ैरों का करम रास न आएगा न आया
आलम दिल-ए-बर्बाद का बर्बाद रहेगा

'फ़रहत' तिरे नग़मों की वो शोहरत है जहाँ में
वल्लाह तिरा रंग-ए-सुख़न याद रहेगा