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मज़ा जब है उसे बर्क़-ए-तजल्ला देखने वाले | शाही शायरी
maza jab hai use barq-e-tajalla dekhne wale

ग़ज़ल

मज़ा जब है उसे बर्क़-ए-तजल्ला देखने वाले

सीमाब बटालवी

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मज़ा जब है उसे बर्क़-ए-तजल्ला देखने वाले
जमाल-ए-यार में तहलील हो जा देखने वाले

नज़र आती तुझे हर ख़ाक के ज़र्रे में इक दुनिया
निगाह-ए-ग़ौर से तू ने न देखा देखने वाले

तुझे नज़दीक से भी एक दिन वो देख ही लेंगे
तसव्वुर में तिरा हुस्न-ए-दिल-आरा देखने वाले

ख़बर भी है तुझे कुछ ये तमाशा-गाह-ए-आलम है
तमाशा ख़ुद न बन जाना तमाशा देखने वाले

हरीम-ए-तूर का 'सीमाब' जब उठने लगा पर्दा
निदा ये ग़ैब से आई सँभल जा देखने वाले