मौत से ज़ीस्त की तकमील नहीं हो सकती
रौशनी ख़ाक में तहलील नहीं हो सकती
मोम हो जाऊँ कि पत्थर से ख़ुदा हो जाऊँ
किसी सूरत मिरी तकमील नहीं हो सकती
किस लिए साँस की ज़ंजीर से बाँधा है मुझे
और कुछ सूरत-ए-तज़लील नहीं हो सकती
किस लिए ज़िंदा हूँ मैं किस के लिए ज़िंदा हूँ
जुर्म ऐसा है कि तावील नहीं हो सकती
इन अंधेरों में लहू-रंग सवेरों की 'नजीब'
क्या फ़िरोज़ाँ कोई क़िंदील नहीं हो सकती

ग़ज़ल
मौत से ज़ीस्त की तकमील नहीं हो सकती
नजीब अहमद