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मौत बेहतर है ऐसे जीने से | शाही शायरी
maut behtar hai aise jine se

ग़ज़ल

मौत बेहतर है ऐसे जीने से

रऊफ़ सादिक़

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मौत बेहतर है ऐसे जीने से
दिल में कुछ भी नहीं क़रीने से

ख़ुश्क आँखें कहाँ झलकती हैं
दिल में उतरे हैं कुछ सफ़ीने से

हम ने क्या छू लिया तसव्वुर में
खनखनाते हैं आबगीने से

हम को फ़ुर्सत नहीं घड़ी-भर की
पैरहन ज़िंदगी का सीने से

एक लम्हा का तजरबा बेहतर
रोज़-ओ-शब साल और महीने से

एक मैं तो हूँ मुंतशिर घर में
वर्ना हर चीज़ है क़रीने से

और अँधेरा बढ़ा दो आँगन में
रौशनी आ रही है ज़ीने से