EN اردو
मौत आती नहीं क़रीने की | शाही शायरी
maut aati nahin qarine ki

ग़ज़ल

मौत आती नहीं क़रीने की

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

;

मौत आती नहीं क़रीने की
ये सज़ा मिल रही है जीने की

मय से परहेज़ शैख़ तौबा करो
इक यही चीज़ तो है पीने की

तुम्हें कहता है आइना ख़ुद-बीं
बातें सुनते हो इस कमीने की

हो गया जब से बे-नक़ाब कोई
शम्अ' रौशन न फिर किसी ने की

चश्म-ए-तर आबरू तू पैदा कर
यूँ नहीं बुझती आग सीने की

अहल-ए-दुनिया से क्या बदी का गिला
ऐ 'तपिश' तू ने किस से की नेकी