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मौसम से रंग-ओ-बू हैं ख़फ़ा देखते चलो | शाही शायरी
mausam se rang-o-bu hain KHafa dekhte chalo

ग़ज़ल

मौसम से रंग-ओ-बू हैं ख़फ़ा देखते चलो

एहसान दानिश

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मौसम से रंग-ओ-बू हैं ख़फ़ा देखते चलो
ये क्या चली चमन में हवा देखते चलो

अम्बार हर तरफ़ हैं अँधेरों के ये दुरुस्त
शायद नहीं हो आब-ए-बक़ा देखते चलो

तसकीन-ए-सुम्बुल-ओ-गुल-ओ-लाला के वास्ते
क्या दे रही है बाद-ए-सबा देखते चलो

जितने थे जाँ-निसार-ए-चमन ब'अद-ए-सुब्ह-ए-नौ
कुछ अज्र भी किसी को मिला देखते चलो

असनाम-ए-ज़र के पाँव में डाले हुए जबीं
कितने हैं बंदगान-ए-ख़ुदा देखते चलो

किस किस का ए'तिमाद-ए-वफ़ा हो गया शिकस्त
किस किस को हुस्न से है गिला देखते चलो

'दानिश' को ज़िद है दैर ओ हरम भी सही मगर
किस को मिला है इन का पता देखते चलो