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मौसम-ए-हिज्र के आने के शिकायत नहीं की | शाही शायरी
mausam-e-hijr ke aane ke shikayat nahin ki

ग़ज़ल

मौसम-ए-हिज्र के आने के शिकायत नहीं की

हलीम कुरेशी

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मौसम-ए-हिज्र के आने के शिकायत नहीं की
ऐ मिरे दिल तुझे क्या हो गया वहशत नहीं की

कोई इल्ज़ाम कोई तंज़ कोई रुस्वाई
दिन बहुत हो गए यारों ने इनायत नहीं की

लफ़्ज़ के शौक़ में ऐसा भी मक़ाम आया है
जुज़ किसी शेर की आमद कोई हसरत नहीं की

जिस के नश्शे में कोई हिज्र गुज़ार आए हैं
वो घड़ी वस्ल की हम ने कभी रुख़्सत नहीं की

अब तुझे कैसे बताएँ कि तिरी यादों में
कुछ इज़ाफ़ा ही किया हम ने ख़यानत नहीं की

सारे मेआर वफ़ाओं के निभाए हम ने
उस को छोड़ा तो बहुत सोच के, उजलत नहीं की

इश्क़ दरिया भी समुंदर भी किनारा भी हलीम
डूबने वाले को देखा है तो हैरत नहीं की