मरहला अब के दिगर है आइने के सामने
मो'तबर ना-मो'तबर है आइने के सामने
आज शायद आईने का झूट पकड़ा जाएगा
आज वह साहब-नज़र है आइने के सामने
धुँद में डूबे होए सारे मनाज़िर देख कर
आइने की आँख तर है आइने के सामने
झुर्रियाँ चेहरे की ये बचपन की वह मासूमियत
एक लम्हे का सफ़र है आइने के सामने
हर नफ़स बे-चेहरगी का कर्ब कब तक झेलता
अब नई सम्त-ए-सफ़र है आइने के सामने
कौन है जो अपने चेहरे से नहीं डरता 'नदीम'
कौन बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर है आइने के सामने

ग़ज़ल
मरहला अब के दिगर है आइने के सामने
नदीम फ़ाज़ली