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मक़्तल से जब गुज़र के हरीफ़ाना आइए | शाही शायरी
maqtal se jab guzar ke harifana aaiye

ग़ज़ल

मक़्तल से जब गुज़र के हरीफ़ाना आइए

परवीन शीर

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मक़्तल से जब गुज़र के हरीफ़ाना आइए
इक दश्त-ए-बे-कनार में फिर घर बनाइए

तारीक हो न पाए कभी दामन-ए-फ़लक
पलकों से ता-ब-सुब्ह सितारे जलाइए

होने न पाए फूलों का मुहताज गुलिस्ताँ
दिल के हज़ार ज़ख़्म हमेशा खिलाइए

चेहरों को क़ैद से हुए आज़ाद गर कभी
बिखरे हुए वजूद को कैसे बचाइए

साहिल न दे सका है सहारा तो क्या हुआ
गिर्दाब को असीर-ए-सफ़ीना बनाइए