EN اردو
मंज़िलें आईं तो रस्ते खो गए | शाही शायरी
manzilen aain to raste kho gae

ग़ज़ल

मंज़िलें आईं तो रस्ते खो गए

इफ़्फ़त ज़र्रीं

;

मंज़िलें आईं तो रस्ते खो गए
आबगीने थे कि पत्थर हो गए

बे-गुनाही ज़ुल्मतों में क़ैद थी
दाग़ फिर किस के समुंदर धो गए

उम्र भर काटेंगे फ़सलें ख़ून की
ज़ख़्म दिल में बीज ऐसा बो गए

देख कर इंसान की बेचारगी
शाम से पहले परिंदे सो गए

अन-गिनत यादें मेरे हमराह थीं
हम ही 'ज़र्रीं' दरमियाँ में खो गए