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मलबे से जो मिली हैं वो लाशें दिखाइए | शाही शायरी
malbe se jo mili hain wo lashen dikhaiye

ग़ज़ल

मलबे से जो मिली हैं वो लाशें दिखाइए

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

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मलबे से जो मिली हैं वो लाशें दिखाइए
साहब नवादिरात की शक्लें दिखाइए

हम लोग बे-बसर हैं मगर बद-नज़र नहीं
ऐनक उतारिए हमें आँखें दिखाइए

दुनिया कमा के सो गए जो बे-चराग़ लोग
उन को मिरा ख़याल है क़ब्रें दिखाइए

जो देखने से बाज़ नहीं आ रहे उन्हें
महशर के दिन की आख़िरी किस्तें दिखाइए

मैं हूँ 'फ़लक' ग़ुलाम-ए-अली या-अली मदद
मुझ को मिरे इमाम सबीलें दिखाइए