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मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला | शाही शायरी
majnun se jo nafrat hai diwani hai tu laila

ग़ज़ल

मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला

नातिक़ गुलावठी

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मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला
वो ख़ाक उड़ाता है लेकिन नहीं दिल मैला

ग़ुल-शोर कहाँ का है सुन तो सही ओ ज़ालिम
क्या है तिरे कूचा में कैसा है ये वावैला

अब गर्दिश-ए-दौराँ को ले आते हैं क़ाबू में
हम दौर चलाते हैं साक़ी से कहो मय ला

हम हैं तो न रखेंगे इतना तुझे अफ़्सुर्दा
चल नग़्मा-ए-'नातिक़' सुन सहरा-ए-जुनूँ नय ला