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मैं उस की अंजुमन में अकेला नहीं गया | शाही शायरी
main uski anjuman mein akela nahin gaya

ग़ज़ल

मैं उस की अंजुमन में अकेला नहीं गया

ज़ीशान साहिल

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मैं उस की अंजुमन में अकेला नहीं गया
जो मैं गया तो फिर कोई तन्हा नहीं गया

मैं चाहता था उस की निगाहों से खेलना
लेकिन ज़रा सी देर भी खेला नहीं गया

मुमकिन नहीं था हुस्न ओ नज़र का मुवाज़ना
मुझ से तो उस को ठीक से देखा नहीं गया

तहवील में किसी की पहुँच के है ख़ुश वो दिल
जिस को किसी मक़ाम पर रक्खा नहीं गया

दोनों तरफ़ थी एक शिकायत लिखी हुई
चाहा कभी गया कभी चाहा नहीं गया