मैं तो साया हूँ घटाओं से उतरने वाला
है कोई प्यास के सहरा से गुज़रने वाला
तू समझता है मुझे हर्फ़-ए-मुकर्रर लेकिन
मैं सहीफ़ा हूँ तिरे दिल पे उतरने वाला
तू मुझे अपनी ही आवाज़ का पाबंद न कर
मैं तो नग़्मा हूँ फ़ज़ाओं में बिखरने वाला
ऐ बदलते हुए मौसम के गुरेज़ाँ पैकर
अक्स दे जा कोई आँखों में ठहरने वाला
मैं हूँ दीवार पे लिक्खा हुआ कब से लेकिन
कोई पढ़ता नहीं रस्ते से गुज़रने वाला
जा रहा है तिरे होंटों की तमन्ना ले कर
ज़िंदगी-भर तिरी आवाज़ पे मरने वाला
ग़ज़ल
मैं तो साया हूँ घटाओं से उतरने वाला
मिद्हत-उल-अख़्तर