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मैं रिवायत हूँ एक भूली हुई | शाही शायरी
main riwayat hun ek bhuli hui

ग़ज़ल

मैं रिवायत हूँ एक भूली हुई

शाइस्ता यूसुफ़

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मैं रिवायत हूँ एक भूली हुई
और तू जिद्दतों में रहता है

मेरी आँखें सवाल करती हैं
क्या ख़ुदा मंज़रों में रहता है

साअतें रक़्स कर रही हैं मगर
मेरा दिल उलझनों में रहता है

परचम-ए-जंग झुक गया लेकिन
वसवसा सा दिलों में रहता है

गो चराग़ाँ किए गए ख़ेमे
पर अंधेरा दिलों में रहता है

आओ मौजों से पूछ कर आएँ
चाँद किन साहिलों में रहता है