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मैं रात सुस्त अनासिर से तंग आ गया था | शाही शायरी
main raat sust anasir se tang aa gaya tha

ग़ज़ल

मैं रात सुस्त अनासिर से तंग आ गया था

ओसामा ज़ाकिर

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मैं रात सुस्त अनासिर से तंग आ गया था
मिरी हयात-ए-फ़सुर्दा में रंग आ गया था

नगाड़े पीटे हवाओं ने सुर्ख़ पहरों तक
गधों का झुण्ड कबूतर के संग आ गया था

सितार बजने लगे सुब्ह की मसहरी पर
धनक का क़ाफ़िला-ए-हफ़्त-रंग आ गया था

फ़लक पे रेंगते सूरज ज़मीन-बोस हुए
वो शहसवार-ए-शफ़क़ बहर-ए-जंग आ गया था

अँधेरे ग़ार में ये किलकिलाती खोपड़ियाँ
इन्ही के देखे रऊनत पे ज़ंग आ गया था

मिरे जहान-ए-बला सौत-ओ-हर्फ़ के द्वारे
न जाने कौन लिए जल-तरंग आ गया था