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मैं नहीं जा पाऊँगा यारो सू-ए-गुलज़ार अभी | शाही शायरी
main nahin ja paunga yaro su-e-gulzar abhi

ग़ज़ल

मैं नहीं जा पाऊँगा यारो सू-ए-गुलज़ार अभी

हबीब तनवीर

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मैं नहीं जा पाऊँगा यारो सू-ए-गुलज़ार अभी
देखनी है आब-जू-ए-ज़ीस्त की रफ़्तार अभी

कर चुका हूँ पार ये दरिया न जाने कितनी बार
पार ये दरिया करूँगा और कितनी बार अभी

घूम फिर कर दश्त-ओ-सहरा फिर वहीं ले आए पाँव
दिल नहीं है शायद इस नज़्ज़ारे से बे-ज़ार अभी

काविश-ए-पैहम अभी ये सिलसिला रुकने न पाए
जान अभी आँखों में है और पाँव में रफ़्तार अभी

ऐ मिरे अरमान-ए-दिल बस इक ज़रा कुछ और सब्र
रात अभी कटने को है मिलने को भी है यार अभी

जज़्बा-ए-दिल देखना भटका न देना राह से
मुंतज़िर होगा मिरा भी ख़ुद मिरा दिल-दार अभी

होंगी तो इस रह-गुज़र में भी कमीं-गाहें हज़ार
फिर भी ये बार-ए-सफ़र क्यूँ हो मुझे दुश्वार अभी