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मैं ख़ुद से किस क़दर घबरा रहा हूँ | शाही शायरी
main KHud se kis qadar ghabra raha hun

ग़ज़ल

मैं ख़ुद से किस क़दर घबरा रहा हूँ

मदन मोहन दानिश

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मैं ख़ुद से किस क़दर घबरा रहा हूँ
तुम्हारा नाम लेता जा रहा हूँ

गुज़रता ही नहीं वो एक लम्हा
इधर मैं हूँ कि बीता जा रहा हूँ

ज़माने और कुछ दिन सब्र कर ले
अभी तो ख़ुद से धोके खा रहा हूँ

बढ़ा दे लौ ज़रा तन्हाइयों की
शब-ए-फ़ुर्क़त में बुझता जा रहा हूँ

इसी दुनिया में जी लगता था मेरा
इसी दुनिया से अब घबरा रहा हूँ

ये नादानी नहीं तो क्या है 'दानिश'
समझना था जिसे समझा रहा हूँ