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मैं ख़ुद से दूर था और मुझ से दूर था वो भी | शाही शायरी
main KHud se dur tha aur mujhse dur tha wo bhi

ग़ज़ल

मैं ख़ुद से दूर था और मुझ से दूर था वो भी

अतीक़ुल्लाह

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मैं ख़ुद से दूर था और मुझ से दूर था वो भी
बहाओ तेज़ था और ज़द में आ गया वो भी

छुआ ही था कि फ़ज़ा में बिखर के फैल गया
मिरी ही तरह धुएँ की लकीर था वो भी

ये देखने के लिए फिर पलट न जाऊँ कहीं
मैं गुम न हो गया जब तक खड़ा रहा वो भी

अभी तो काँटों-भरी झाड़ियों में अटका है
कभी दिखाई दिया था हरा-भरा वो भी

बिछड़ने वाले किसी के लिए नहीं रुकते
फिर ऐसा वक़्त भी आया बिछड़ गया वो भी