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मैं ख़ुद अपना लहू पीने लगा हूँ | शाही शायरी
main KHud apna lahu pine laga hun

ग़ज़ल

मैं ख़ुद अपना लहू पीने लगा हूँ

त्रिपुरारि

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मैं ख़ुद अपना लहू पीने लगा हूँ
कहाँ पानी किसी से माँगता हूँ

ये दुनिया आग है इक आग जिस में
मैं ख़ुद को झोंक देना चाहता हूँ

तिरी ख़ामोशियों के पंछियों को
मैं आवाज़ों के दाने बाँटता हूँ

अकेले-पन के बीहड़ जंगलों में
तुम्हारा नाम ले कर चीख़ता हूँ

लहकती आग के तन्नूर में अब
तुम्हारी याद ज़िंदा झोंकता हूँ

मैं अपने-आप से नाराज़ हूँ अब
सो अपने आप को कम टोकता हूँ