मैं कहा एक अदा कर तो लगा कहने ''ऊँ-हूँ''
देख टुक आँख चुरा कर तो लगा कहने ''ऊँ-हूँ''
सब से हँसता था वो कल, रो के जो मैं बोल उठा
हम से भी टुक तू हँसा कर तो लगा कहने ''ऊँ-हूँ''
मैं कहा दिल को मैं ले जाऊँ तो बोला वो कि ''हूँ''
ले चला जब मैं उठा कर तो लगा कहने ''ऊँ-हूँ''
मैं कहा सब्र ओ दिल ओ दीं ने वफ़ा हम से न की
बे-वफ़ा तू तो वफ़ा कर तो लगा कहने ''ऊँ-हूँ''
मैं कहा जाम-ए-मय पीते हो तो बोला वो कि ''हूँ''
जब कहा लाऊँ छुपा कर तो लगा कहने ''ऊँ-हूँ''
मैं कहा सोहबत-ए-अग़्यार बरी है प्यारे
उन से इतना न मिला कर तो लगा कहने ''ऊँ-हूँ''
मैं कहा इश्क़ को इज़हार करूँ बोला ''हूँ''
जब कहा कहता हूँ जा कर तो लगा कहने ''ऊँ-हूँ''
मैं कहा समझे है आज़ार मिरा बोला ''हूँ''
जब कहा कुछ तो दवा कर तो लगा कहने ''ऊँ-हूँ''
मैं कहा अब तिरी दूरी से है 'जुरअत' बे-ताब
कुछ तो कह पास बला कर तो लगा कहने ''ऊँ-हूँ''
ग़ज़ल
मैं कहा एक अदा कर तो लगा कहने ''ऊँ-हूँ''
जुरअत क़लंदर बख़्श