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मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे | शाही शायरी
main janam janam ka anis hun kisi taur dil mein basa mujhe

ग़ज़ल

मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे

हसन नईम

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मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे
कोई रंज है तो गमीं न हो कोई दाग़ है तो दिखा मुझे

ये तमाम सब्ज़ा-ए-आब-जू ये तमाम ख़ेमा-ए-रंग-ओ-बू
तिरे जिस ख़याल का अक्स हैं वो ख़याल कर दे अता मुझे

जिन्हें हर्फ़-ए-जाँ की ख़बर नहीं वो पढ़ाने आए किताब-ए-जाँ
जिन्हें कोई इल्म-ए-वफ़ा न था वो सिखाने आए वफ़ा मुझे

मैं नियाज़-मंद-ए-जुनूँ सही मुझे अक़्ल से भी है वास्ता
किसी ख़्वाब की न झलक दिखा तिरे पास क्या है दिखा मुझे

तिरी गुफ़्तुगू से गुमाँ हुआ कोई बात मेरी भली लगी
मैं 'नईम' हूँ कि 'हसन' हूँ अब यही बात पहले बता मुझे