EN اردو
मैं जानता हूँ वो नज़दीक ओ दूर मेरा था | शाही शायरी
main jaanta hun wo nazdik o dur mera tha

ग़ज़ल

मैं जानता हूँ वो नज़दीक ओ दूर मेरा था

मज़हर इमाम

;

मैं जानता हूँ वो नज़दीक ओ दूर मेरा था
बिछड़ गया जो मैं उस से क़ुसूर मेरा था

जो पाँव आए थे घर तक मिरे वो उस के थे
वो दिल बढ़ा था जो उस के हुज़ूर मेरा था

बड़ा ग़ुरूर था दोनों को हम-नवाई पर
निगाह उस की थी लेकिन सुरूर मेरा था

वो आँख मेरी थी जो उस के सामने नम थी
ख़मोश वो था कि यौम-ए-नुशूर मेरा था

कहा ये सब ने कि जो वार थे उसी पर थे
मगर ये क्या कि बदन चूर चूर मेरा था