EN اردو
मैं भी गुम माज़ी में था | शाही शायरी
main bhi gum mazi mein tha

ग़ज़ल

मैं भी गुम माज़ी में था

प्रखर मालवीय कान्हा

;

मैं भी गुम माज़ी में था
दरिया भी जल्दी में था

एक बला का शोर-ओ-ग़ुल
मेरी ख़ामोशी में था

भर आईं उस की आँखें
फिर दरिया कश्ती में था

एक ही मौसम तारी क्यूँ
दिल की फुलवारी में था

सहरा सहरा भटका मैं
वो दिल की बस्ती में था

लम्हा लम्हा राख हुआ
मैं भी कब जल्दी में था?