मैं भी बे-अंत हूँ और तू भी है गहरा सहरा
या ठहर मुझ में या ख़ुद में मुझे ठहरा सहरा
रूह में लहर बनाते हैं तिरी लहरों से
और कुछ देर मिरे सामने लहरा सहरा
आँख झपकी थी बस इक लम्हे को और इस के ब'अद
मैं ने ढूँडा है तुझे ज़िंदगी सहरा सहरा
अपनी हस्ती को बिखरने से बचा लेना तुम
मुझ पे मत जाना मिरी जान मैं ठहरा सहरा
मेरे लहजे का समुंदर ही नहीं सूखा है
लुट गया तेरी हँसी का भी सुनहरा सहरा
ग़ज़ल
मैं भी बे-अंत हूँ और तू भी है गहरा सहरा
इफ़्तिख़ार मुग़ल