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मैं अवाम में हूँ लेकिन नहीं ख़ू-ए-आमियाना | शाही शायरी
main awam mein hun lekin nahin KHu-e-amiyana

ग़ज़ल

मैं अवाम में हूँ लेकिन नहीं ख़ू-ए-आमियाना

एहसान दानिश

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मैं अवाम में हूँ लेकिन नहीं ख़ू-ए-आमियाना
न अमल ख़ुशामदाना न सुख़न ख़ुशामदाना

तिरी और ज़िंदगी है मिरी और ज़िंदगी है
मैं बुलंदियों का जूया तो असीर-ए-आशियाना

मुझे रास ही न आई कभी नाक़िसों की सोहबत
मिरे जिस्म-ए-ना-तवाँ में नहीं रूह-ए-ताजिराना

मिरे ख़िज़्र के क़दम हैं मुझे मशअ'ल-ए-मनाज़िल
मिरे दीदा-ए-तलब में है निगाह‌‌‌‌-ए-मुजरिमाना

ग़म-ओ-रंज का छुपाना भी है कार-ए-ज़र्फ़ लेकिन
है ख़ुशी को ज़ब्त करना रह-ओ-रस्म-ए-आक़िलाना

तिरी तमकनत अगर है किसी दूसरे के बल पर
ये चलन है बाग़ियाना ये क़दम है मुजरिमाना

मुझे ख़िज़्र-ए-नौ की हाजत नहीं राह-ए-बंदगी में
मिरे मस्लक-ए-वफ़ा में ये रविश है काफ़िराना