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मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो | शाही शायरी
mai ho abr o hawa nahin to na ho

ग़ज़ल

मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो
दर्द हो गर दवा नहीं तो न हो

हम तो हैं आश्ना तिरे ज़ालिम
तू अगर आश्ना नहीं तो न हो

दिल है वाबस्ता तेरे दामन से
दस्त मेरा रसा नहीं तो न हो

हम तो तेरी जफ़ा के बंदे हैं
तुझ में रस्म-ए-वफ़ा नहीं तो न हो

आस्ताँ पर तो गिर रहे हैं अगर
तेरी मज्लिस में जा नहीं तो न हो

हम तो हैं साफ़, बद-गुमाँ मेरे
तेरे दिल में सफ़ा नहीं तो न हो

दिल को इक्सीर हैगी तेरी निगाह
हवस-ए-कीमिया नहीं तो न हो

हम तो हाशा नहीं किसी से बुरे
कोई हम से भला नहीं तो न हो

तालिब-ए-वस्ल कब तलक रहिए
हो तो हो जाए या नहीं तो न हो

'हातिम' अब किस की मुझ को परवा है
कोई मिरा जुज़ ख़ुदा नहीं तो न हो