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महके जब रात-की-रानी तो मुझे ख़त लिखना | शाही शायरी
mahke jab raat-ki-rani to mujhe KHat likhna

ग़ज़ल

महके जब रात-की-रानी तो मुझे ख़त लिखना

मतरब निज़ामी

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महके जब रात-की-रानी तो मुझे ख़त लिखना
चोट उभर आए पुरानी तो मुझे ख़त लिखना

कुछ न कह सकना ज़बानी तो मुझे ख़त लिखना
जब हो अश्कों में रवानी तो मुझे ख़त लिखना

चेहरा पढ़ लेता हूँ मैं आते हुए मौसम का
कोई रुत आए सुहानी तो मुझे ख़त लिखना

चुप है अंदाज़-ए-निगारिश तो कोई बात नहीं
बोल उठें लफ़्ज़-ओ-मआ'नी तो मुझे ख़त लिखना

मैं हूँ लम्हों को कसौटी पे परखने वाला
वक़्त हो सोने का पानी तो मुझे ख़त लिखना

बन के आ जाऊँगा पंखे का हसीं शहज़ादा
सुनना परियों की कहानी तो मुझे ख़त लिखना

कभी वा'दे का हसीं फूल दिया था तुम ने
याद आए वो निशानी तो मुझे ख़त लिखना

फूल के ज़ख़्मों की तस्वीर तुम्हें भेजूँगा
कभी मौसम जो हो धानी तो मुझे ख़त लिखना