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महजूर कोई बात दिलेराना लिखेगा | शाही शायरी
mahjur koi baat dilerana likhega

ग़ज़ल

महजूर कोई बात दिलेराना लिखेगा

मोहम्मद ख़ालिद

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महजूर कोई बात दिलेराना लिखेगा
शाएर न बना तो कोई अफ़्साना लिखेगा

हर ग़ुंचा-ए-आज़ाद नुमू पाएगा अपनी
गुलशन की हर इक बात जुदागाना लिखेगा

दुनिया का जो मंज़र है वो संगीन पड़ा है
हर अहल-ए-नज़र उस को फ़रेबाना लिखेगा

तुम क्या किसी तारीख़ को तब्दील करोगे
इंसान का दिल सैल का परवाना लिखेगा

पर्दे जो उठेंगे तो मुअर्रिख़ का क़लम भी
तहज़ीब के दामान पे क्या क्या न लिखेगा

साज़िश की बुनत ख़ून के तारों से हुई है
मज़लूम का ख़ूँ उस को बहीमाना लिखेगा

ईंधन के लिए आतिश ओ आहन का बहाना
असरार-ए-हक़ीक़त कोई दीवाना लिखेगा

एहसास के मरक़द का मुजावर कोई होगा
सफ़्फ़ाक को जो दिलबर-ए-जानाना लिखेगा