महफ़ूज़ रहेगा क्या एहसास का आईना
पत्थर के मुक़ाबिल है अल्मास का आईना
अब चेहरा-ए-माज़ी भी पहचाना नहीं जाता
यूँ टूट के बिखरा है इतिहास का आईना
मफ़्हूम तो मब्नी है क़ारी की बसीरत पर
अल्फ़ाज़ से रौशन है क़िर्तास का आईना
इस अहद में रिश्तों की बे-रंग दुकानों में
हीरे से भी महँगा है विश्वास का आईना
इस शहर में यूँ फैली आज़ार की परछाईं
हर शख़्स का चेहरा है अब यास का आईना
ग़ज़ल
महफ़ूज़ रहेगा क्या एहसास का आईना
अनवर मीनाई