महक किरदार की आती रही है
सदाक़त फूल बरसाती रही है
सितारों ने कही तेरी कहानी
सुहानी शब तुझे गाती रही
नज़र किस ज़ाविए पे जा के ठहरे
क़यामत हर अदा ढाती रही है
जहाँ अपना लहू बोता रहा हूँ
वो बस्ती मुझ से कतराती रही है
सुलगती चीख़ती प्यासी ज़मीं पर
घटा घनघोर भी छाती रही है
जो मेरे सामने हर दम रहा है
उसी की याद भी आती रही है
'हयात' उस सम्त से आती हवा भी
पयाम-ए-ज़िंदगी लाती रही है
ग़ज़ल
महक किरदार की आती रही है
हयात लखनवी