मह-रुख़ाँ की जो मेहरबानी है
ये मदद मुझ पे आसमानी है
रश्क सीं उस के साफ़ चेहरे के
चश्म पर आइने की पानी है
दाम में बुल-हवस के आया नईं
क्यूँ कि ये बाज़ आश्यानी है
चर्ब है शम्अ पर जमाल उस का
शम्अ की रौशनी ज़बानी है
उस के रुख़्सार देख जीता हूँ
आरज़ी मेरी ज़िंदगानी है
सिर्फ़ सूरत का बंद नईं 'नाजी'
आशिक़-ए-साहब-ए-मआनी है
ग़ज़ल
मह-रुख़ाँ की जो मेहरबानी है
नाजी शाकिर