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माथे पर टीका संदल का अब दिल के कारन रहता है | शाही शायरी
mathe par Tika sandal ka ab dil ke karan rahta hai

ग़ज़ल

माथे पर टीका संदल का अब दिल के कारन रहता है

क़य्यूम नज़र

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माथे पर टीका संदल का अब दिल के कारन रहता है
मंदिर में मस्जिद बनती है मस्जिद में बरहमन रहता है

ज़र्रे में सूरज और सूरज में ज़र्रे रौशन रहता है
अब मन में साजन रहते हैं और साजन में मन रहता है

रुत बीत चुकी है बरखा की और प्रीत के मारे रहते हैं
रोते हैं रोने वालों की आँखों में सावन रहता है

इक आह निशानी जीने की रहती थी मगर जब वो भी नहीं
क्यूँ दुख की माला जपने को ये तिनका सा तन रहता है

ऐ मुझ पर हँसने और किसी को देखने वाले ये तो कहो
यूँ कब तक जान पे बनती है यूँ कब तक जोबन रहता है

दिल तोड़ के जाने वाले सुन दो और भी रिश्ते बाक़ी हैं
इक साँस की डोरी अटकी है इक प्रेम का बंधन रहता है