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मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से | शाही शायरी
manus raushni hui mere makan se

ग़ज़ल

मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से

राना आमिर लियाक़त

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मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
वो जिस्म जब निकल गया रेशम के थान से

तुम में से कौन कौन मुझे ये बताएगा
उतरा है कौन मेरे लिए आसमान से

तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगी
मैं देखता रहा हूँ तुझे ख़ाक-दान से