मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
वो जिस्म जब निकल गया रेशम के थान से
तुम में से कौन कौन मुझे ये बताएगा
उतरा है कौन मेरे लिए आसमान से
तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगी
मैं देखता रहा हूँ तुझे ख़ाक-दान से

ग़ज़ल
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
राना आमिर लियाक़त