लिख रहा हूँ हर्फ़-ए-हक़ हर्फ़-ए-वफ़ा किस के लिए
माँगता हूँ ज़िंदा रहने की दुआ किस के लिए
फूल हैं सब एक गुलशन के तो फिर तख़सीस क्यूँ
सेहन-ए-गुलशन में ये ज़हरीली हवा किस के लिए
मैं तो नाकाम-ए-मोहब्बत हूँ चलो रुस्वा हुआ
तू बता है तेरा पैमान-ए-वफ़ा किस के लिए
मैं तो इक ख़्वाहिश की भी तकमील पर क़ादिर नहीं
ये शिकोह-ए-ख़ुस्रवाना ये अना किस के लिए
मुझ को ख़ुश-फ़हमी नहीं है ऐ हवा फिर भी बता
मुज़्तरिब है वो तग़ाफ़ुल-आश्ना किस के लिए
खो चुका है उस को जब तू ख़ुद ही ऐ 'सुल्तान-रश्क'
अब धड़कता है दिल-ए-बे-मुद्दआ किस के लिए

ग़ज़ल
लिख रहा हूँ हर्फ़-ए-हक़ हर्फ़-ए-वफ़ा किस के लिए
सुलतान रशक