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लजा लजा के सितारों से माँग भरती है | शाही शायरी
laja laja ke sitaron se mang bharti hai

ग़ज़ल

लजा लजा के सितारों से माँग भरती है

मख़मूर सईदी

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लजा लजा के सितारों से माँग भरती है
उरूस-ए-शाम ये किस के लिए सँवरती है

वो अपनी शोख़ी-ए-रफ़्तार-ए-नाज़ में गुम है
उसे ख़बर ही कहाँ किस पे क्या गुज़रती है

जवाब उस के सवालों का दे कोई कब तक
ये ज़िंदगी तो मुसलसल सवाल करती है

उस आरज़ू ने हमें भी किया असीर अपना
वो आरज़ू जो सदा दिल में घुट के मरती है

अब आ गए हो तो ठहरो ख़राबा-ए-दिल में
ये वो जगह है जहाँ ज़िंदगी सँवरती है

ये छटने वाले हैं बादल जो काले काले हैं
इसी फ़ज़ा में वो रौशन धनक निखरती है

कोई पड़ाव नहीं इस सफ़र में ऐ 'मख़मूर'
जो चल पड़े तो हवा फिर कहाँ ठहरती है